जब न थी सरहदे, न थी दूरियाँ,
तब की कहानी सुनाऊँ मै सबको,
न हीर- राँझा , न लैला- मजनू
दो दिलो की दास्तान सुनाऊँ मैं सबको,
न धर्म की दीवार थी,न थी कोई बन्दिशें,
दो वतन ने दूर किए दिलो की ख्वाहिशे।
अफसाना था नाम उसका
थी बिल्कुल बेपरवाह
इरफ़ान की मोहब्बत में,
थी बेरुख सी हवा ।
इस बेरुख सी हवा के साथ
तूफ़ान का मंज़र आया,
अफसाना-इरफ़ान के बीच
सरहदे आ गई,
मोहब्बत का गुलाब न खिला
नफरत की कांटे बिछ गई ।
दोनों परिवारों में आई दूरियाँ
हिंदुस्तान - पकिस्तान में बट गई
दोनों दिलो की नज़दीकियां ।
अब चाकू और तलवारो ने
बंदूकों की आवाज़ों ने
उन खून की लेहरो में
इश्क़ के जज़्बातों को बहा दिया ।
एक इस ओर गया
एक उस ओर गई
दोनों ने साथ छोड़ दिया।
ज़माने से हारी थी ये मोहब्बत,
एक अधूरी दास्तान बताऊ मैं सबको।
-DIKSHITA PRIYADARSHINI
When there were no boundaries, no distances,
Let me tell the story of that age,
Neither Heer-Ranjha nor Laila-Majanu
Let me tell you the story of two hearts,
There were no walls of religion nor any boundaries,
The two homelands separated two hearts in love.
Asana was her name
She was absolutely carefree
In The Love of Irrfan,
There was a soothing wind.
With this apathy air
The storm came,
Between Afsana-Irrfan
The boundaries came,
Roses of love did not bloom,
Thorns of hatred were spread everywhere.
Distances in both families came,
Hindustan - Pakistan got divided,
The closeness of both hearts was now distanced.
Now the knives and the swords,
The sounds of guns,
Swept away the emotions of love
in the waves of blood.
One went to this side
One went to that side
Both of them left.
This love lost itself in those days,
I tell you an incomplete story of that age,
-DIKSHITA PRIYADARSHINI
WOWWW.............
ReplyDeletegreat lines
ReplyDeleteGreat poem
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